होली: रंग, भंग और ठगों का संग
© Pankaj Verma
भारत में त्यौहार मनाने का जोश अलग ही लेवल पर होता है, लेकिन अगर कोई त्यौहार सबसे ज्यादा "जोशीला" होता है, तो वो है
होली। इस दिन रंग के नाम पर कुछ भी चलेगा,
चाहे पड़ोसी की दीवार हो, सड़क पर खड़ा स्कूटर हो, या फिर बेचारा बबलू जो सुबह-सुबह दूध लेने निकला था।
होली का अनूठा गणित
होली में रंग जितना चढ़ता है, गणित उतना गड़बड़ हो जाता है। उदाहरण के लिए, अगर कोई पांच गिलास भांग पीता है, तो वो खुद को दस जगह देख सकता है और बीस लोगों से बात कर सकता है, भले ही वहां सिर्फ तीन लोग खड़े हों।
गली के नुक्कड़ पर बैठा रामलाल पिछले तीन साल से इंतजार कर रहा था कि कोई उसे रंग लगाए, लेकिन इस बार उसने ठान लिया कि वह पहले वार करेगा। जैसे ही श्यामू सामने आया, रामलाल ने रंग उड़ेला, लेकिन हवा ने उसका साथ नहीं दिया और पूरा रंग उसी के चेहरे पर आ गिरा। अब वो खुद को देख आईने में कह रहा था, "होलिएस्ट ऑफ ऑल टाइम!"
भांग: पानी से सस्ती, होश से महंगी
भांग इस दिन हर गली-मोहल्ले में ऐसे उपलब्ध होती है, जैसे सरकारी वादे – सबको मिलती है, लेकिन सही असर किसी को नहीं होता। कुछ लोग इसे "पंचामृत" समझकर पी जाते हैं और फिर दुनिया से कट जाते हैं।
मुंह में मिठाई डालने आए थे, लेकिन भूलकर रंग का पैकेट खा गए। भांग का असर होते ही एक सज्जन अपने घर की छत को इंडिया गेट समझकर सलामी देने लगते हैं और पड़ोसी की गाड़ी को ऊँट।
पिछली होली पर मिश्रा जी ने कसम खाई थी कि अब भांग नहीं पीएंगे,
लेकिन इस बार उन्होंने पीने के बजाय "चखने" का विकल्प चुना। फर्क सिर्फ इतना था कि चखते-चखते वो वहीं सो गए और जब जागे तो खुद को किसी अनजान छत पर पाया।
रंग लगाने की नई-नई तकनीकें
पहले लोग गुलाल लगाकर काम चला लेते थे, फिर गीले रंग आए, और अब "परमानेंट डाई" का ज़माना है। कई बार ऐसा होता है कि इंसान का नाम भूल जाता है, लेकिन उसका चेहरा याद रह जाता है, क्योंकि रंग अगले एक हफ्ते तक धुलने का नाम नहीं लेता।
गुप्ता जी को हर साल रंग से एलर्जी होती है, लेकिन जब तक उनकी यह बात मोहल्ले के लड़कों तक पहुँचती,
तब तक वो पहले ही इंद्रधनुष बन चुके होते हैं। उनका रंग छुड़ाने का एक ही तरीका है – दिवाली तक इंतजार करें!
पड़ोसियों का 'बैकस्टैबिंग' प्लान
होली के दिन पड़ोसी भी दुश्मनों से कम नहीं होते। पहले तो प्यार से बुलाते हैं – "आओ भैया, गुलाल लगाते हैं," और जैसे ही आप करीब आते हैं, अचानक उनकी पूरी टोली बाल्टी भरकर रंग डाल देती है।
पिछले साल पांडे जी ने अपने पड़ोसी वर्मा जी को रंगने के लिए पूरी प्लानिंग की। सुबह चार बजे उठकर उनके दरवाजे पर चुपचाप अबीर छिड़क दिया। जैसे ही वर्मा जी बाहर आए, वो खुद ही फिसलकर रंग में सराबोर हो गए। पांडे जी ने छत से देखा और कहा, "स्वाभाविक होली!"
होली की मिठाइयाँ: नशे से ज्यादा मीठी
गुझिया, मालपुए, और ठंडाई का आनंद उठाने का असली मज़ा होली पर ही आता है। लेकिन एक समस्या यह होती है कि हर मिठाई में इतनी शक्कर होती है कि एक बार खाने के बाद डायबिटीज़ भी सोच में पड़ जाए कि अब वो असर करे या रुक जाए।
शर्मा जी को खाने-पीने का इतना शौक है कि जब तक वो चार किलो गुझिया न खा लें, उन्हें होली अधूरी लगती है। इस बार उनके बेटे ने गुझिया में नमक डाल दिया, लेकिन भांग के असर में शर्मा जी को मिठी ही लगी।
होली की अपरिहार्य घटनाएँ
1.
चाचा को हमेशा सबसे पहले रंगा जाता है।
2.
गली का सबसे शरीफ लड़का ही सबसे ज्यादा रंगा जाता है।
3.
जिसको भांग नहीं पीनी होती, वही सबसे ज्यादा पी लेता है।
4.
हर साल कोई न कोई पिचकारी से मुंह धोने की गलती कर देता है।
5. होली के बाद
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निष्कर्ष: होली एक राष्ट्रीय दायित्व है
होली सिर्फ एक त्यौहार नहीं, बल्कि एक सामाजिक परीक्षा है जिसमें आपको बिना किसी कारण के हंसना,
नाचना, गाना और भागना पड़ता है। कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने भी सभ्य इंसान हों, होली के दिन आपको कोई न कोई पकड़ ही लेगा और आपको पूरा नीला-पीला बना देगा।
तो अगली होली के लिए तैयार रहें, क्योंकि रंगों से बचने का कोई तरीका नहीं, सिर्फ एक ही उपाय है – खुद ही पहले से रंग में रंग जाइए! "बुरा ना मानो होली है!" 🎨😂