भविष्य से जुड़ें दो बातें कभी नहीं रुकती वक्त और उम्र। ऐसा कोई बंधन नहीं बना जो इन्हें बांध सके। वक्त गुजरता है और उम्र सरकती है। समय का सदुपयोग करना ही उम्र का सम्मान है। हर नया वर्ष समय के गुजरने का इशारा है। इस साल में प्रवेश के साथ तीन बातों का ध्यान रखा जा सकता है। अतीत को छोड़ें, वर्तमान को पकड़ें और भविष्य से जुड़ें। अतीत की स्मृतियों का भी अपना बोझ होता है। इसी वजन से जिंदगी की चाल ही लड़खड़ा जाती है। जो अनुभव देने में काम आए बस वे ही यादें काम की हैं। वर्तमान को सदैव पकड़ें, सफलता के सूत्र यहीं बिखरे रहते हैं। इन दोनों के साथ अपने आप को भविष्य से जरूर जोड़कर रखें। बिना दूरदर्शिता के आई हुई सफलता को जल्दी ही बैसाखी देना पड़ जाती है। जब हम २0 १२ में प्रवेश की तैयारी कर रहे होंगे तब २क्१३ भी हमारे लिए तैयार हो चुका होगा। हमारे ऋषि-मुनियों ने नववर्ष को ऋतुओं से जोड़ा था। आप भले ही अंग्रेजी कैलेंडर से या भारतीय तिथि से नववर्ष मनाएं, वक्त को तो बदलना ही है। महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि इस समय परिवर्तन को हमने कैसे लिया है अपने जीवन के लिए। भारतीय संस्कृति के चार ग्रंथों में समय के परिवर्तन पर सुंदर दृष्टांत आए हैं। जब भी वक्त बदलता है तीन संभावनाएं बनती हैं। पहली, नए समय में वही चलता रहे जो चल रहा था तो आप जड़ बन जाएंगे, रुका-रुका सा जीवन। दूसरी संभावना होगी समय हमारे अनुकूल होगा। ऐसे में हम सक्रिय तो रहेंगे, परंतु आगे नहीं बढ़ सकेंगे। विकास, प्रगति से वंचित रहेंगे। तीसरी स्थिति होगी कि हमारे सामने चुनौतियां आएंगी, लगातार संघर्ष रहेगा और इसी में से हमें सफलता हासिल करनी होगी। तीसरे हालात हमें मजबूत, गहरा, सुलझा और कामयाब व्यक्तित्व प्रदान करेंगे। देखिए, समय कैसे बदलता है। महाभारत में पांडव चक्रवर्ती राजा बन चुके थे। उनसे जुआ खेलने की भूल हुई। ये निर्णय ऐसा था जिसमें उन्होंने अपना सब गंवा दिया। कई बार जीवन में कुछ दांव ऐसे चल जाते हैं जो नुकसान दे जाते हैं। पांडव 12 वर्ष वन में रहे। लौटे वापस, अपना राज्य मांगा, दुर्योधन ने नहीं दिया और युद्ध हुआ। पांडवों ने कृष्ण के सहारे महाभारत का युद्ध जीता। भूल हो तो फौरन सुधारें और अपने परिश्रम से अपने अधिकार को प्राप्त करें, लेकिन महत्वपूर्ण यह कि कृष्ण साथ में हों। कृष्ण का अर्थ है जो समय के बदलाव को जानते हैं, जो संघर्ष को विपत्ति नहीं, जीवनशैली मानते हैं, जो चुनौतियों को भी प्रैक्टिस के रूप में लेते हैं और जो हर काम को शत्-प्रतिशत करते हैं। आने वाले साल में हमारे पास पांडवों की तरह भूल के बाद खोने के अवसर आ सकते हैं, लेकिन नए वर्ष में कृष्ण बचाए रखिएगा। यानी एक ऐसी जीवनशैली जो बदलते समय को हमारे पक्ष में कर सके, संघर्ष, चुनौतियों के साथ। प्रेरक प्रसंग ऐसे लौटकर आ जाती है मदद की अच्छाई फ्लेमिंग नाम के स्कॉटलैंड के किसान ने दलदल में धंस रहे एक बच्चे को बचाया। वो सामंत का बेटा था। लेकिन किसान ने पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया। इस पर सामंत ने किसान के बेटे को पढ़ाने की जिम्मेदारी ली। इस किसान के बच्चे को दुनिया ने पैनिसिलीन के अविष्कारक एलेक्जेंडर फ्लेमिंग के रूप में जाना। लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि बाद में उस सामंत का बेटा बीमार पड़ा। जिसकी जान फ्लेमिंग के अविष्कार ने बचाई। यही बीमार बच्च बड़ा होकर सर विंस्टन चर्चिल कहलाया, जिसने दूसरे विश्वयुद्ध में ब्रिटेन का नेतृत्व किया। बुरे वक्त में भी हमारा महत्व कम नहीं होता एक वक्ता ने सेमिनार हॉल में लोगों को 100 रुपए का नोट दिखाकर पूछा- क्या कोई यह नोट लेना चाहेगा? सभी ने हाथ उठा दिए। वक्ता ने नोट को कई बार मोड़ने के बाद फिर सभी से पूछा। तब भी सबने हाथ उठा दिए। फिर वक्ता ने उस नोट को जमीन पर फेंक कर धूल में भर दिया। फिर सभी से पूछा। तब भी सबने हाथ उठा दिए। तब वक्ता ने कहा- आज आप सभी इसे पाना चाहा क्योंकि आप इसका महत्व जानते हैं। इसी तरह जिंदगी में परिस्थितियों केचलते हमारे दुर्गति होती है, लेकिन नोट की ही तरह हमारा भी महत्व कम नहीं होता। क्या भूलें, क्या याद रखें इसे क्विज की तरह लेने की कोई जरूरत नहीं। सिर्फ पढ़ते जाइए.. जीवन को नई दिशा देने वाले ये सवाल-जवाब सवाल हैं 1. पांच सबसे अमीर लोगों के नाम? 2. पिछली पांच रणजी ट्रॉफी विजेता टीम के नाम? 3. पिछली पांच मिस इंडिया कौन हैँ? 4. पांच नोबेल या पुलित्जर पुरस्कार विजेता? 5. पांच ऑस्कर अवॉर्ड विजेता अभिनेता या अभिनेत्रियों के नाम? ..शायद ही कोई इन सवालों के जवाब देना चाहे? क्योंकि हम में से कोई भी बीते कल की हेडलाइन याद नहीं रखना चाहता। इन सवालों के जवाब हालांकि अपने क्षेत्र में बेस्ट हैं। लेकिन वाहवाही ज्यादा दिन नहीं रहती। अवॉर्ड भुला दिए जाते हैं। प्रशस्ति-पत्र पाने वाले के साथ ही चले जाते हैं। इनसे लंबा सरोकार नहीं होता। अब एक नजर इन सवालों पर 1. उन टीचर्स के नाम, जिन्होंने आपको स्कूल की पढ़ाई में मदद की? 2. अपने तीन दोस्तों के नाम, जिन्होंने बुरे वक्त में आपका साथ दिया? 3. वे पांच लोग, जिन्होंने आपको जिंदगी का बहुमूल्य सबक सिखाया? 4. वे पांच लोग कौन हैं, जिनके साथ वक्त गुजारना आपको अच्छा लगता है? इनके सवालों के जवाब आप कभी नहीं भूलते.. जिन लोगों ने हमारे जीवन में खुशियां और प्रेरणा दीं, वे उनमें से नहीं थे जिनके पास सबसे ज्यादा दौलत थी। उन्हें शायद कोई बड़ा पुरस्कार या सम्मान भी नहीं मिला। लेकिन वे हमेशा आपका ख्याल रखते रहे। नए साल में निश्चित रूप से आप इन्हें सबसे ज्यादा याद रखना चाहेंगे। प्रेरणा चाहे साधु निंदा करें या प्रार्थना। चाहे भाग्य की देवी आएं या जहां जाना हो जाए। चाहे मृत्यु आज आ जाए या सौ साल बाद। दृढ़ संकल्पी इंसान वही है, जो सत्य के पक्ष में है और किसी हाल में सत्य से एक इंच भी नहीं डिगता। स्वामी विवेकानंद ॥ इंसान ज्यादातर वैसा बनता है जैसा वह खुद के बारे में सोचता है। अगर मुझे भरोसा है कि मैं यह काम कर सकता हूं, तो शुरुआत में न होने पर भी बाद में मुझमें उसे करने की क्षमता जरूर आ जाएगी। महात्मा गांधी ॥जीवन दूर तक फैला हुआ एक ऐसा खेत है, जिसे कभी जोता न गया हो और जो चुपचाप इस इंतजार में हो कि कोई आकर उसे जोते। मानो वह स्वतंत्र और ईमानदार लोगों से कह रहा हो-मुझमें सत्य और न्याय के बीज बोओ और मैं तुम्हें तुम्हारे परिश्रम का सौ गुना फल दूंगा। मक्सिम गोर्की ॥ जीतना सबकुछ नहीं है। पर ज्यादा महत्वपूर्ण जीत की उम्मीद करना है। विंस लोंबार्डी ॥ऐसा कुछ लिखें जो पढ़ने लायक हो। इससे भी बेहतर है कि ऐसा कुछ करें जिस पर कुछ अच्छा लिखा जा सके। बेंजामिन फ्रेंकलिन नई पीढ़ी खुद के बारे में भूख कुछ बनाने की कुछ कर दिखाने की: अर्पिता बोहरा नई दिल्ली. मैं आजाद शब्द के बारे में गहराई से सोचती हूं तो मुझे याद आती है वो तस्वीर जो हर बच्चा स्कूल में बनाता है। जिसमें नुकीले पर्वत, सूरज की किरणों, घुमावदार नदियां और नीले आसमान तले एक झोपड़ी जिसके ऊपर तीन चिड़ियां उड़ती दिखाई देती हैं। गांधी फैलोशिप के दौरान उसके संस्थापक आदित्य नटराज के एक सवाल ने मुझे बहुत प्रभावित किया। सवाल था कि क्या मैं उनमें से एक हूं जो अपनी जिंदगी को इस तस्वीर की ही तरह देखते हों। क्या इस पेंटिंग में मुझे अपने पति की आकृति बनानी चाहिए? साथ ही दो बच्चे, एक कार और एक शानदार इमारत जहां मैं रोज काम करने के लिए जाया करूं? इस दौरान मैंने खुद से सवाल पूछना शुरू किया कि क्या मैं किसी चीज को इसलिए चुन रही हूं क्योंकि मुझे ऐसा करने के लिए कहा गया था या फिर इसलिए कि मैं खुद उसे चुनना चाहती थी? जिन उपदेशों के साथ हमारी पीढ़ी बड़ी हुई है वे हमें सिर्फ अर्जित करना सिखाते हैं। हमें बताया जाता है कि जिंदगी को चीजों से भरो ना कि तजुर्बो से। लेकिन मेरी पीढ़ी में कुछ बदलाव आ रहे हैं। युवाओं के मन में कहीं एक असंतोष फैल रहा है। एक भूख कुछ बनाने की, कुछ करने की, अपने अस्तित्व को एक अर्थ देने की और यह सब एक आलीशान ऑफिस में डेडलाइन पर काम खत्म करने और टारगेट हासिल करने से परे है। इसके अलावा भी कुछ नया है। आज हम इस अबोले असंतोष को ऑनलाइन साधनों से दूसरों तक पहुंचा सकते हैं। धीरे-धीरे हम ये सवाल उठाने लगे हैं। सड़कों पर। बुलंद आवाज में। एक साथ मिलकर। साथ ही हम अपने आपको आजाद महसूस करने लगे हैं। हम एक-दूसरे को राह दिखा रहे हैं वो सब करके जो हमने चुना है ना कि वो जो हमें करने को कहा गया है। 2011 साल था तहरीर चौक का, वालस्ट्रीट खाली करो के नारे का और अण्णा टोपियों का। अभी भी इसमें इस बात पर एक आम सहमति की कमी है कि हम किस दुनिया में रहना चाहते हैं और इसे कैसा देखना चाहते हैं। हम एक बार फिर आजादी, संपत्ति और खुशी को नई परिभाषा दे रहे हैं। हम चुनाव करने लगे हैं कि उस पर्वतों वाली तस्वीर को आखिर हम देखना कैसे चाहते हैं। पुरानी धारणाओं को बदलना और एक अलग ही दुनिया की कल्पना करना आजादी का मूल है। धीरे धीरे ही सही पर हम आजादी को निश्चित ही चुन रहे हैं। (अर्पिता बोहरा गांधी फेलोशिप कर चुकी हैं और सामाजिक कार्यकर्ता हैं)
Source: पं. विजयशंकर मेहता
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